



शिक्षक संघ (सियाराम) ने बिना नीति व बिना रोक हटाए स्थानांतरण किए जाने पर जताया ऐतराज
मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री को लिखा पत्र
जयपुर : 20 अगस्त / राजस्थान शिक्षक संघ (सियाराम) ने पारदर्शी स्थानांतरण नीति जारी किए बिना ही एवं बिना रोक हटाए ही शिक्षकों के स्थानांतरण एवं पदस्थापन किए जाने पर ऐतराज जताया है। इस बाबत संगठन के मुख्य संरक्षक एवं प्रशासनिक अध्यक्ष सियाराम शर्मा ने मुख्यमंत्री ,शिक्षा मंत्री ,मुख्य सचिव एवं शिक्षा सचिव को पत्र भेज कर पारदर्शी स्थानांतरण नीति जारी कर स्थानांतरण से रोक हटाकर सभी केडर के शिक्षकों के स्थानांतरण किए जाने की मांग की।
संगठन के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल मीणा ने बताया कि संगठन की ओर से भेजे गए पत्र में लिखा गया कि शिक्षा विभाग में स्थानांतरणों पर लगे प्रतिबंध को हटाकर सभी ग्रेड के शिक्षकों का एक पारदर्शी स्थानांतरण नीति बनाकर स्थानांतरण करने चाहिए थे,परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया गया है।
भाजपा की सरकार आने के बाद स्थानांतरणों पर रोक होते हुए भी शिक्षा विभाग के द्वारा पदस्थापन,प्रतिनियुक्ति व स्थानांतरण किए जाते रहे हैं। इससे शिक्षकों में भारी असंतोष तो है ही साथ ही सरकार की सकारात्मक छवि पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। स्थानांतरणों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध होते हुए भी शिक्षा विभाग में पदस्थापन,प्रतिनियुक्ति व स्थानांतरण किए गए हैं।सर्वप्रथम पाठ्यपुस्तक मंडल इत्यादि में शिक्षकों का समायोजन किया गया।सभी केडर के शिक्षकों की एवं प्राचार्य की शिक्षण व्यवस्था के नाम पर प्रतिनियुक्ति की गई थी। इसके अंतर्गत तृतीय वेतन श्रंखला शिक्षकों के अंतर जिला, द्वितीय ग्रेड शिक्षकों के अंतर मंडल भी प्रतिनियुक्ति की गई थी तथा व्याख्याता और प्राचार्य का विद्यालय में एक ही पद होता है,उनकी भी शिक्षण व्यवस्था के नाम से प्रतिनियुक्ति की गई, जबकि इनका वेतन पदस्थापित स्थान से ही उठाया जाता रहा है।इसी प्रकार हाल ही में प्राचार्य के स्थानांतरण किए गए हैं। सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों के माध्यम से समाचार मिल रहे हैं कि काफी संख्या में प्राचार्य के स्थानांतरण बिना रोक हटाए हुए शिक्षा विभाग द्वारा करने की योजना है।इस प्रकार की प्रतिस्थापन /प्रति नियुक्तियां /स्थानांतरण का आधार क्या है? इस पर विचार करने की आवश्यकता है।बिना पारदर्शी शिक्षा स्थानांतरण नीति के स्थानांतरण किए जाने पर हर सरकार में भाई भतीजावाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार के आरोप समाचार पत्रों में, विधानसभा व सरकारी कार्यक्रम में लगते रहे हैं।